Tuesday, July 2, 2013

दश थुँगा - ३


डोकोको पिंधमा

हर्हरी बसाइरहेको

रोपाईंको खाजा

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छतमा अटेश-मटेश


रोपाइँको बिउ

माइक्रोबसलाई हतार छ

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डोरी

धेरै अग्लो नखेल

चन्द्रमा हंसियाकार छ

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मोटी आमा

दुब्ली छोरीसंगै

मर्निंगवाकमा निस्किन्

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शहर झरियो

बलियो मुदुसभित्र

गाउँ कोचेर

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हावाले उचालेको हो कि

पानीले उतारेको

पहाडमाथिको रातो घाम

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आफ्नै छातीमा

हिउँ जमाउँदा

पोखरी थिचिएन ?

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खाली बसस्टप

उभिईरहेको आफ्नै झल्को

स्कूलको एक दशक

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गोलो रुख

फुलहरु पनि

गोलाकारै झरेका छन्

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आफ्नै जालोमै

महापरिनिर्वाण

धन्य, माकुरा !

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