Saturday, October 29, 2016

महामहिम राष्ट्रपतिजी से नम्र निबेदन

महामहिम राष्ट्रपति जी !
हम आपके स्वागतमे खडे है
अभी त्योहारका बक्त है
पर सच्चा त्योहार तो आपके आनेसे होगा
सडक बिलकुल खालि होगा
घर घर मे दिवाली होगा
कोइ भी काम पे नहीं जाएगा
जय जयकार और ताली होगा
हम एकदम तयार है
आपको ब्यग्र इन्तजार है

आपकी आजादीका छेसठ साल गुजर गए
हमारी लोकतन्त्र भी उतनी ही हो गए
दोनो बक्त हम साथ साथ रहे
सारे चिजें तो बिलकुल अच्छे रहे
पर एक बात हमसे गलती हो गई
हमारा चाबी खो गई
बादमे पता चला
धन्य, चाबी दिल्लीमे ही छुट गया था
हमारा तो होश टुट गया था
लोग कहते हे- तुम बुद्दु हो
अपना चाबी वहाँ छोड आते हो
फिर बार बार चिल्लाते हो












हमारे जो भी उधर जाते हे
गान्धीजीके समाधिमे फूल चढाते है
डोसा, नान और मीठा पान खाते है
रोटी बेटी रिस्ता से बात उठाकर
एम्बुलेन्स, दमकल और साइकल जैसे
अच्छी अच्छी चिजें भेटी ले आते है
फिर भी वह चाबी छुट जाते है

नजाने कैसा हे वह चाबी
लगेज कि भार से ज्यादा तो नहीं ?
हम छोटे लोग क्या जानते है
जो भी हो, फिर भी वह लेकर आना था
अपना ताला बन्द होते ही
रिस्तेदारों को दिक्कत नहीं देना था
हम भी यहाँ बहुत सर्मिन्दा है

दुसरे ने ‘बुद्दु’ कहकर भी
हम इतने दिनोतक सुनता रहा
फिर आज हमे ये क्या हुवा
हम थोडा सा घबराने लगे
आपको एक निबेदन लेखकर
स्वयम् अपनेको समझाने लगे

महामहिम राष्ट्रपति जी !
हम आपके स्वागतमे धीर से खडे है
हमको बडा कृपा करके
फिर अच्छी रिस्तेदारीको निभाना,
वह चाबी लाकर सबके सामने
सिंहदरबारमे रख जाना |   

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